डेथ रेलवे से कॉम्पिटिटिव एग्जाम के सबक फिल्म ‘द ब्रिज ऑन द रिवर क्वाई’ सिखाती है लीडरशिप और एडेप्टेबिलिटी

द्वितीय विश्वयुद्ध (1939-45) के दौरान बर्मा को जीतने के लिए जापानी सैन्य अभियान के हिस्से के रूप में ‘बर्मा रेलवे’ जिसे ‘डेथ रेलवे’ के नाम से भी जाना जाता है, का निर्माण किया गया था। इस रेलवे को थाईलैंड और बर्मा को जोड़ने के लिए जापानियों द्वारा बनाया गया था, और ये काम केवल 16 महीनों में पूरा किया गया था।

इसी बैकग्राउंड पर डायरेक्टर डेविड लिन द्वारा एक फिक्शनल फिल्म ‘द ब्रिज ऑन द रिवर क्वाई’ का निर्माण किया गया था जिसे वर्ष 1957 में रिलीज किया गया। यह एक क्लासिक फिल्म है जो ब्रिटिश सैनिकों के एक ग्रुप की कहानी बताती है जिन्हें द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापानियों द्वारा युद्ध-बंदियों के रूप में रखा गया था।

क्या थी डेथ रेलवे

इस रेलवे के निर्माण में 1,00,000 से अधिक सिविलियन (असैनिक) मजदूरों और अमानवीय परिस्थितियों में काम करने वाले 60,000 युद्ध-बंदियों का उपयोग शामिल था। रेलवे को पहाड़ी इलाकों और जंगल के बीच से बनाया गया था, और यह काम कठिन था, जिसमें अलाइड फोर्सेस के लगभग 12,000 युद्धबंदी बीमारी, भुखमरी और दुर्व्यवहार से मारे गए थे (इसीलिए इसे डेथ रेलवे कहा जाता है)।

डेथ रेलवे का निर्माण, और कॉम्पिटिटिव एग्जाम के सबक

‘बर्मा रेलवे’ जिसे ‘डेथ रेलवे’ के नाम से भी जाना जाता है, इतिहास का वो काला अध्याय है जो प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए मूल्यवान सबक प्रदान करता है।

ये फिल्म लीडरशीप, टीम वर्क और दृढ़ता जैसे विभिन्न विषयों को प्रदर्शित करती है, जिन्हें प्रतियोगी परीक्षाओं और जीवन के अन्य पहलुओं में लागू किया जा सकता है। आज हम कुछ सबकों पर चर्चा करेंगे।

4 बड़े सबक

1) पहला सबक: लीडरशिप का महत्व

फिल्म के एक दृश्य में फिल्म के मुख्य पात्रों में से एक कर्नल निकोलसन कहते हैं कि ‘The best way to escape from a problem is to solve it’ अर्थात ‘किसी समस्या से बचने का सबसे अच्छा तरीका यह होता है कि उसे सुलझा लिया जाए’।

अलाइड फोर्सेस के युद्धबंदी यदि ब्रिज बनाने में जापानियों की मदद नहीं करते तो उन्हें मार दिया जाता, क्योंकि फिर वे जापानियों के लिए किसी काम के नहीं होते। अतः ब्रिज का निर्माण ‘कैदियों’ के जीवन की गारंटी थी। इस बात को कर्नल निकोलसन और दूसरे अफसर समझते हैं और अपने आदमियों को कठोर परिस्थितियों का सामना करने के बावजूद एक पुल बनाने के लिए एक साथ काम करने के लिए प्रेरित करते हैं।

कॉम्पिटिटिव एग्जाम्स के लिए यह सीख जस की तस लागू होती है – The best way to escape from a problem is to solve it. परीक्षा टफ तो है, लेकिन उस आग के दरिया में सीधे घुसकर ही उसे पार किया जाएगा।

2) दूसरा सबक: एडेप्टेबिलिटी या परिस्थितियों के अनुसार ढलने की क्षमता

प्रिजनर्स कैंप में ब्रिज का निर्माण करते हुए युद्धबंदियों में से एक, कमांडर शीयर्स (फिल्म का पात्र) कहता है ‘We’re all fighting a war in different ways’ अर्थात ‘हम सभी एक ही युद्ध अलग-अलग तरीकों लड़ रहे हैं’।

कहने का अर्थ यह है कि सभी युद्धबंदी बदली परिस्थितियों में बंदूकों और बमों के बजाय पहले ब्रिज का निर्माण करने में जापानियों को सहयोग देकर, जीवित रहने का मौका और समय पाते हैं और बाद में उसी ब्रिज को गिराने की योजना भी बनाते हैं। सैनिकों को अपने नए परिवेश के अनुकूल होना था और नए औजारों और सामग्रियों के साथ काम करना सीखना था।

भारत में कॉम्पिटिटिव एग्जाम्स भी वॉर की तरह ही हैं और ‘We’re all fighting a war in different ways’ हूबहू लागू होता है। हर स्टूडेंट की लड़ाई उसकी अपनी होती है, और कोई एक टेम्पलेट सब पर फिट नहीं होता।

3) तीसरा सबक: टीमवर्क नियंत्रण और संतुलन

जापानी लेफ्टिनेंट मीऊरा सभी युद्धबंदियों को सम्बोधित करते हुए कहते हैं ‘We are honored to have the opportunity to build a bridge over the River Kwai.’ अर्थात ‘हमें क्वाई नदी पर ब्रिज बनाने का मौका मिला है’।

जरा सोचिए, जैसे भी हो, ब्रिज किन लोगों ने मिलकर बनाया? उसमें थाई और बर्मी सिविलियन मजदूर, इंग्लैंड और अमेरिका के युद्धबंदी और जापानी सैनिक शामिल थे। फिल्म में सैनिक चुनौतियों का सामना करने के बावजूद पुल बनाने के लिए मिलकर काम करते हैं।

जापानी ऑफिसर्स को नियंत्रण और अनुशासन बनाए रखने की आवश्यकता के साथ गति और दक्षता की आवश्यकता को भी संतुलित करना था, और पर्यावरण और श्रमिकों की स्थितियों से उत्पन्न कई चुनौतियों से निपटना था।

वे प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करने में भी एक-दूसरे का समर्थन करते हैं, जो प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता के लिए महत्वपूर्ण है। लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए टीम वर्क आवश्यक है, क्योंकि यह श्रम के विभाजन और ज्ञान और कौशल को साझा करने की अनुमति देता है।

4) चौथा सबक: दृढ़ता

फिल्म का एक पात्र मेजर कलिप्टन कहता है ‘We are soldiers, not engineers. Our duty is to follow orders.’ अर्थात दृढ़ता फिल्म से मिली एक और महत्वपूर्ण सीख है।

फिल्म में सैनिकों को कठोर परिस्थितियों और मौत के खतरे जैसी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, लेकिन वे पुल बनाने के अपने लक्ष्य की दिशा में काम करना जारी रखते हैं। प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए यह एक महत्वपूर्ण सबक है, क्योंकि कठिन समय में आगे बढ़ते रहना और अपने लक्ष्यों को कभी नहीं छोड़ना महत्वपूर्ण है।

सारांश

तो हम इस शानदार फिल्म से ये सीखते हैं

1) The best way to escape from a problem is to solve it

2) We’re all fighting a war in different ways

3) We are honored to have the opportunity to build a bridge over the River Kwai

4) We are soldiers, not engineers. Our duty is to follow orders

इसके अलावा, फिल्म क्रिटिकल थिंकिंग, बलिदान, मानवाधिकार और नैतिकता के महत्व पर भी प्रकाश डालती है।

इसे भी पढ़े – विश्व ब्रेल दिवस 2023 पर निबंध, ब्रेल लिपि और लुइस ब्रेल से कुछ जुड़ी ख़ास बातें | Facts & Essay on World Braille Day in हिंदी

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top